नई दिल्ली, एजेंसी। देशभर के बाजारों में इस बार दिवाली के त्योहारी सीजन पर हुई जबरदस्त बिक्री ने भारत की अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दे दिया है। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, त्योहारी सीजन के कारोबार ने यह साबित किया है कि भारत में मनाए जाने वाले त्योहार, देश के व्यापार एवं आर्थिक चक्र को कैसे घुमाते हैं। कैट ने इस आयाम को सनातन अर्थव्यवस्था का नाम देते हुए कहा कि देश के व्यापार के लिए त्योहारों का मनाया जाना बेहद ही महत्वपूर्ण है।
एक अनुमान के अनुसार, देश में प्रति वर्ष सनातन अर्थव्यवस्था का यह कारोबार लगभग 25 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है। यह आंकड़ा, देश के कुल रिटेल कारोबार का लगभग 20 फीसदी है। यह बेहद स्पष्ट है कि भारत में त्योहार, तीर्थ आदि के कारण बहुत बड़ी धनराशि बाजार चक्र में पहुंचती है। यह राशि, दुनिया के 100 से ज्यादा देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल के मुताबिक, इस कारोबार के मद्देनजर भारत के व्यापारी वर्ष भर में होने वाले विभिन्न त्योहारों के लिए अपनी दुकानों में विशिष्ट प्रबंध करते हैं। खासतौर पर त्योहारी सीजन में बड़ा व्यापार होता है। त्योहारों से देशभर में रोजगार तथा स्व-व्यापार के बड़े अवसर भी उपलब्ध होते हैं। इसके जरिए मध्यम एवं निम्न वर्ग का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रति वर्ष सनातन अर्थव्यवस्था का यह कारोबार लगभग 25 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। इसे देश के कुल रिटेल कारोबार का लगभग 20 फीसदी कहा जा सकता है। सनातन अर्थव्यवस्था की व्याख्या करते हुए दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा, नवरात्रि से लेकर दीवाली के दिन तक देश के मेन लाइन रिटेल व्यापार में 3.75 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ है। वहीं देश भर में दुर्गा पूजा और इसके आस पास हुए अन्य त्योहारों में लगभग 50 हजार करोड़ का व्यापार हुआ है। गणेश चतुर्थी के दस दिवसीय समारोह के दौरान 20-25 हजार करोड़ रुपये का कारोबार देखा गया है।
बतौर खंडेलवाल, यह आंकड़े तो सिर्फ 3 त्योहारों के हैं। इसी तरह से होली, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि और राखी जैसे अन्य ढेरों त्योहारों पर बाजारों में हुई व्यापक खरीदी को भी जोड़ा जाए, तो कई सौ लाख करोड़ रुपये, सनातन व्यापार में जुड़ जाएंगे। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश भर में लगभग 10 लाख से अधिक मंदिर हैं। वहां प्रतिदिन लोगों द्वारा बड़ा खर्च किया जाता है। इसके साथ ही बड़ी मात्रा में तीर्थ स्थलों पर जाने वाले श्रद्धालुओं द्वारा किए गए खर्चों को जोड़ दें, तो यह आंकड़ा सनातन अर्थव्यवस्था को स्वत: ही भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण बना देता है। इससे यह बेहद स्पष्ट है कि भारत में त्योहार, तीर्थ आदि के कारण बहुत बड़ी धनराशि बाजार में पहुंचती है। यह धन राशि दुनिया के 100 से ज्यादा देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है। खंडेलवाल ने बताया, यह कोई नई व्यवस्था नहीं है, बल्कि हजारों वर्षों से चलती आ रही है। इसका केंद्र, देश के मंदिर, त्योहार एवं तीर्थ ही बनते आए हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे पुराना पहिया है जो किसी भी परिस्थिति में कभी भी नहीं रुकता।
जहां तक रोजगार का सवाल है, तो मात्र दुर्गा पूजा के समय, सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही 3 लाख से ज्यादा कारीगरों, मजदूरों को काम मिला है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा, होली, संक्रांति आदि अन्य त्योहारों की वजह से जहां करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है, वहीं लाखों लोग स्वयं का छोटा-बड़ा व्यापार भी कर पाते हैं। विशेष बात यह है कि न केवल दुकानों के व्यापार को, बल्कि देश के बेहद छोटे वर्ग, स्थानीय कारीगरों, कलाकारों एवं घरेलू काम करने वाले लोगों को बड़ा व्यापार मिलता है, जिनमें से लाखों लोग ऐसे हैं, जिनकी आजीविका ही त्योहारों पर निर्भर रहती है। दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा, बड़े आंकड़ों की बजाय यदि धनतेरस के एक दिन के व्यापार को ही देख जाये, तो भारतीय मध्यम वर्ग द्वारा एक दिन में 25,500 करोड़ रुपये का 41 टन सोना खरीदा गया था। चांदी की बिक्री 3000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। कार निर्माताओं ने 55000 कारों की डिलीवरी की। लगभग 5 लाख से ज्यादा स्कूटरों की डिलीवरी की गई। भरतिया एवं खंडेलवाल ने कहा, यही ‘सनातन अर्थशास्त्र’ है, जो देश के व्यापार के लिए बेहद ही अहम है। इस गणित को समझने के लिए अर्थशास्त्री होना जरूरी नहीं है, बल्कि यह साफ दिखाई देता है।